अक्सरहां जो ताकत बटोरने लगते हैं तन्हाई में मरने/मारे जाने को अभिशप्त होते हैं।

1979 में जब सांसद पीलू मोदी पाकिस्तान में अपनी फांसी की मुकर्रर सजा का इंतजार करते अपने कैदी मित्र जुल्फिकार अली भुट्टो से मिलने गए तो भुट्टो ने अपने दोस्त के सामने भारतीय संसदीय लोकतंत्र के शोर शराबे और हंगामे को भरपूर दिलकशी से याद करते हुए अपने राजनीतिक जलवागरी के दिनों में उस लोकतांत्रिक हालात का मजाक उड़ाने पर अफसोस जाहिर किया।



भुट्टो ने कहा उस शोरगुल और हंगामे में एक खास किस्म की जीवंतता है, उसमें संख्यात्मक मान की ताकत और सुरक्षा है। उस व्यवस्था में किसी नागरिक की किस्मत किसी एक इंसान के फितूर और सनक पर निर्भर नहीं होती।



(पीलू मोदी द्वारा फली नरीमन को सुनाया गया, 'बिफोर मेमोरी फेडस' फली नरीमन की आत्मकथा से, हे हाउस इंडिया, 22वां प्रकाशन, 2019, पृष्ठ 142)



अक्सरहां जो ताकत बटोरने लगते हैं तन्हाई में मरने/मारे जाने को अभिशप्त होते हैं।



याद रहे, आज जो सड़कों को खामोश कर रहे हैं, संसद जैसी संस्था जिनके ताकत से आवारा (और कतई बदचलन भी) हो रही है, वे अपनी मृत्यु में भी कोई गरिमा नहीं पा सकेंगे।

 



संविधान अमर रहे।

raghvendra kumar 

advocate supreem court