पानी वाली बाई : मृणाल गोरे

स्मरण......
मुम्बई में पानी वाली बाई के नाम से मशहूर समाजवादी आंदोलन की आधार स्तम्भ मृणाल गोरे की बहुत कहानियां पढ़ी और सुनी थी लेकिन उनसे प्रत्यक्ष भेंट का अवसर 1994 में आया l वे समता संगठन के उम्मीदवार श्री गोपाल गांगूडा के चुनाव प्रचार के लिए आई थी और उन्होंने पिपरिया और पचमढ़ी में चुनावी सभाओं को सम्बोधित किया था l उस दौरान हम लोग लाल टोपी लगाए थे जिसे देखकर वे बहुत प्रसन्न हुई थी l दो दिन उनके साथ रहने और चर्चा करने का मौका मिला l हम उन्हें लेकर पचमढ़ी में उस स्थान पर गए जहां 1952 में समाजवादियों का पहला सम्मेलन हुआ था l उस स्थान पर अब न्यू होटल बन गई है lमृणाल गोरे का नाम देश की जानी-मानी समाजवादी नेत्रियों में शुमार था । वे 1977 में मुंबई उत्तर से संसद सदस्य चुनीं गईं। वे सभासद, विधायक और सांसद के तौर पर लगातार गरीबों के लिए संघर्ष करती रहीं। मुंबई में पानीवाली बाई के रूप में चर्चित थीं। मृणाल महान महिला सामाजिक कार्यकर्ताओं में से एक थीं और जीवन पर्यंत गरीबों और समाज के वंचित वर्ग के अधिकारों के लिए संघर्ष करती रहीं।महाराष्ट्र में समाजवादी आंदोलन की आखिरी स्तंभ मानी जाने वाली मृणाल ने स्थानीय प्रशासन के साथ लड़ाई लड़कर झुग्गी बस्तियों को पानी का कनेक्शन दिलवाया था। इसके बाद से लोग उन्हें पानीवाली बाई के नाम से पुकारने लगे। वे 1961 में पहली बार स्थानीय निकाय चुनाव लड़ी और जीत हासिल की। 1964 में पानी के लिए हुए संघर्ष में 11 लोगों की मौत होने के बाद उन्होंने झुग्गी बस्तियों में पानी की आपूर्ति के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया था। वे 1972 में सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर बड़े अंतर से चुनाव जीतकर विधायक चुनीं गईं। मृणाल ताई ने भारत छोड़ो आंदोलन और गोवा मुक्ति संग्राम में भी भाग लिया था l



पुण्यतिथि पर मृणाल ताई को नमन