विश्व प्रसिद्ध आदिवासी चित्रकार पेमा फत्या का निधन

हाल में ही विश्व प्रसिद्ध आदिवासी चित्रकार पेमा फत्या का निधन हो गया है. उनको देश के बड़े कलाकारों में गिना जाता था. मध्य प्रदेश सरकार द्वारा उन्हें प्रतिष्ठित तुलसी सम्मान भी दिया गया था. वह मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के रहने वाले थे. उनका निधन ३१ मार्च को हो गया था. वह भील आदिवासी समाज से आते थे. भील आदिवासियों का विश्व प्रसिद्ध चित्र कला ‘पिथौरा’ है. और पेमा फत्या उसके श्रेष्ठ ‘पिथौरा’ कलाकार थे. पिथौरा पेंटिंग ज‍िसे पिठोरा भी कहा जाता है, भील जनजाति की एक विशिष्ट कला है. इसमें ध्वनि सुनना एवं उसे आकृति के रूप में उकेरने की अद्भुत कला का प्रदर्शन किया जाता है. यह कला भारत में एक मात्र ऐसी कला है, जिसमें विशिष्ट ध्वनि सुनना, उसे समझना और लेखन से चित्र रूप प्रदान करना प्रमुख है.


भील आदिवासियों के समाज में पिठोरा सजावट के चित्र नहीं हैं, यह विशिष्ट धार्मिक अनुष्ठान है, जिसमें चित्रकार अपने मन से कोई रूपांकन नहीं करता. यह उर्वरता और समृद्धि के देवों के आह्वान और उनको समर्पित छवियां हैं. ज़ाहिर है कि इन छवियों में सौंदर्य का उतना महत्व नहीं, जितना कि विधान का. गांव के पुजारी या बड़वा के चित्रांकन देखकर संतुष्ट होने के बाद ही इसे पूरा माना जाता है. पेमा ने शुरुआत में अपने पिता से चित्र बनाना सीखा मगर शार्गिद रामलाल छेदला के हुए. भील समाज की परम्परा में पिठोरा चित्रांकन का कौशल विरासत में नहीं मिलता यानी ज़रूरी नहीं कि यह हुनर लिखंदरा के बेटे को ही मिले. जैसे रामलाल लिखंदरा ने उन्हें सिखाया, वैसे ही पेमा ने अपने भतीजे थावर सिंह को सिखाया. पेमा के दोनों बेटे पंकज और दिलीप मजदूरी करते हैं. दुनिया के कितने ही संग्रहालयों-कला वीथिकाओं में उन्हीं पेमा के हाथ के बने पिठोरा संजोये हुए हैं, जिन्होंने पचास सालों से ज़्यादा वक़्त तक भाभरा के कितने ही घरों की भीत पर पिठोरा के चित्र उकेरे थे. पेमा फत्या का जाना एक कल्पनाशील चित्रकार का जाना है,ऐसे शख़्स का जाना भी है, जिनकी सरल और सौम्य शख़्सियत भी मुतासिर करती थी.


अस्सी के दशक में झाबुआ के कलेक्टर रहे जी. गोपालकृष्णन ने पहली बार जब पेमा के चित्र देखे तो वह ख़ासे प्रभावित हुए. गोपालकृष्णन ने पेमा को कलेक्ट्रेट के लिए एक पेंटिंग बनाने का काम सौंपा और इसके लिए पांच हज़ार रुपये मेहनताना दिया. पेमा की इस पेंटिंग को उन्होंने प्रदर्शनी में भी भेजा और इसे राज्य स्तर के दो पुरस्कार मिले. इसी के हवाले से जे.स्वामीनाथन को पेमा फत्या मिल गए. जे.स्वामीनाथन ने पेमा के हवाले पिठोरा में शामिल रूपों की पहचान इस तरह की है – बाबा गणेश, काठिया घोड़ा, चंदा बाबा, सूरज बाबा, तारे, सरग (आकाश), जामी माता, ग्राम्य देवता, पिठोरा बाप जी, रानी काजल, हघराजा कुंवर, मेघनी घोड़ी, नाहर, हाथी, पानी वाली, बावड़ी, सांप, बिच्छू, भिश्ती, बंदर और पोपट के साथ ही चिन्नाला, एकटांग्या, सुपारकन्या। आयताकार रेखाओं के घेरे में बायें हाथ पर सबसे नीचे हुक्का पीते हुए काले रंग की जो छवि बनाते हैं, वही बाबा गणेश हैं, इनकी और गणेश की प्रचलित छवि में कोई समानता नहीं होती, हां, भील आख्यानों में ख़ूब जगह पाने वाला घोड़ा पिठोरा ( पिथौरा) के केंद्र में होता ही है।


हमारे आदिवासी समाज व कला जगत के लीये यह एक अपूर्णीय क्षति है. हम सब की तरफ से महान कलाकार पेमा फत्या जी को नमन व विनर्म श्रद्धांजलि.


Source-tribalstuff. in